Mahakumbh Mela 2025: दोस्तों क्या आप जानते है की 2013 में जब प्रयागराज में कुम्भ मेला आयोजित हुआ था तब इतने श्रद्धालु एकत्रित हुए थे, की आयोजन की अद्भुत छवि को अंतरिक्ष से भी देखा गया था। पौराणरिक कथाओ के अनुसार कुम्भ का सम्बन्ध समुन्द्र मंथन से है जो अमृत प्राप्ति के लिए देवताओ और असुरो के बीच की संगर्ष की कहानी है।
Mahakumbh Mela 2025 – महाकुम्भ मेला 2025
आज मैं आपको महाकुंभ के ऊपर एक कथा के बारे में बताऊंगा। ये कथा ये है की कई युगो पहले अमृत की तलाश में समुन्द्र को मंथा गया था और इस मंथन से एक अमृत कलश प्रकट हुआ था। और इस अमृत कलश को लेकर देवताओ और असुरो के बीच युद्ध हुआ था।
इस युद्ध में छिना झपटी के दौरान कलश से अमृत छलक करके 4 स्थानों पर गिर गया था। वो स्थान हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक इन जगहों पर अमृत की बुँदे गिरी थी। और यही कारण है की कुम्भ का मेला इन चार पवित्र स्थलों पर आयोजित किया जाता है।
कुम्ब मेला क्यों आयोजित किया जाता है
पूरी कथा ये है की अभी सागर मंथन से अमृत कलश बाहर आया ही था की असुरो में होड़ मच गयी थी की वो देवताओ से पहले ही इसे अधिकार में लेकर अमृत को पी लेंगे। राजा बली की सेना में उनका सेनापति था जिसका नाम असुर भानु था। जो जल , थल और आकाश तीनो ही जगहों पर तेज गति से दौड़ सकता था।
असुर भानु ने अमृत कलश को एक ही पल में धनवंत्री देव के हाथ से झटक लिया और आकाश की ओर लेकर चला गया देवताओ के ही दल में भी इंद्र के पुत्र जयंत ने जैसे असुर भानु अमृत की ओर लपकते देखा तो तुरंत कौवे का रूप धारण करके उसके पीछे उड़ गए।
आकाश में असुर भानु से अमृत कलश छीनने लगे जयंत को अकेला पड़ता देख करके सूर्य चन्द्रमा देवताओ के गुरु वृहस्पति भी उनके साथ में आ गए कलश से छलक कर सबसे पहले अमृत हरिद्वार में गिरा था। इसी बीच में असुर भानु का साथ देने कुछ और असुर आकाश में उड़े और इन सब के बीच में अमृत कलश को लेकर छिना झपटी शुरू हो गयी।
पहली बार जब अमृत छलक के हरिद्वार में गिरा था और हरिद्वार तीर्थ स्थल बन गया था। और जब दूसरी बार अमृत छलका तो गंगा यमुना और सरस्वती के संगम स्थल प्रयाग में गिरा था। यह स्थान भी तीर्थ स्थान बना गया अगले दो और प्रयासों में जब अमृत छलका तो उज्जैन के शिप्रा नदी में जा गिरा और चौथी बार में नासिक के गोदावरी में अमृत की बुँदे गिरी।
इसी तरीके से गंगा नदी में दो बार इसके अलावा शिप्रा नदी और गोदावरी में अमृत की बुँदे गिरी थी। इनके किनारे बेस हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक है यहाँ पर कुम्भ के मेले का आयोजन होने लगा। इसी वजह से कुम्भ मेला हर बार आयोजित किया जाता है।
कुम्भ का मेला 12 साल में ही क्यों आता है
कुम्भ मेले का स्थान तय करने में ग्रहो की दिशा का बहुत बड़ा योगदान है सूर्य, चन्द्रमा और वृहस्पति ग्रहो की स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण है। सूर्य और चन्द्रमा जब मकर राशि में होते है और वृहस्पति वृशक राशि में होते है तो कुम्भ का मेला प्रयागराज में आयोजित होता है।
अगर सूर्य मेष राशि और वृहस्पति कुम्भ राशि में होते है तो कुम्भ का मेला हरिद्वार में आयोजित होता है। इसके साथ ही जब सूर्य सिंह राशि और वृहस्पति गृह भी सिंह राशि में होते है तो कुम्भ का मेला उज्जैन में आयोजित होता है। इसके बाद जब सूर्य सिंह राशि और वृहस्पति सिंह या कर्क राशि में होते है तो कुम्भ का मेला नासिक में आयोजित किया जाता है।
ऐसा कहा जाता है की इंद्र के बेटे जयंत असुर भानु से अमृत कलश छीनकर भागे थे इसके बाद जयंत 12 दिन बाद स्वर्ग पहुंचे थे। ऐसा माना जाता है की देवताओ का 1 दिन मनुष्य 1 वर्ष के बराबर होता है इसलिए कुम्भ मेले का आयोजन 12 वर्ष में किया जाता है।
प्रयागराज में लगने वाले कुम्भ मेले को महाकुम्भ मेला क्यों कहा जा रहा है
आज मैं आपको कुम्भ के बारे में विस्तार में बताऊंगा कुम्भ 4 प्रकार के होते है पहला कुम्भ, अर्ध कुम्भ पूर्ण कुम्भ और महाकुम्भ और इसमें कुम्भ का आयोजन हर 12 साल में किसी एक स्थान पर किया जाता है। और अर्ध कुम्भ हर 6 साल में आयोजित किया जाता है जो सिर्फ हरिद्वार और प्रयागराज में लगता है।
पूर्ण कुम्भ की बात करे तो 12 साल में 1 बार लगता है ये सिर्फ प्रयागराज में आयोजित होता है। और जब 12 पूर्ण कुम्भ पुरे होते है तब महाकुम्भ कहलाता है यही महाकुम्भ इस बार प्रयागराज में लग रहा है। इस बार जो प्रयागराज में जो मेला लगने जा रहा है वो 144 वर्षो के बाद लगने जा रहा है इसलिए इसे महाकुम्भ नाम दिया गया है।
इसका महत्त्व बाकी कुम्भ मेले से अधिक होता है पवित्र नदिया गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर लगने वाले इस आयोजन का उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति है। पुरे विश्व भर से बहुत श्रद्धालु इस मेले में आने वाले है। क्योकि इस महाकुम्भ मेले की विशेषता बहुत अधिक हो जाती है।
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