ये कहानी है एक गुरुकुल में पढ़ने वाले एक शिष्य की है उस शिष्य का गुरुकुल में अंतिम दिन था गुरुकुल में वो शिष्य गुरु जी प्रणाम करने और विदा लेने के लिए पंहुचा तो गुरु जी ने उसे एक तोहफा दिया और कहा की ये एक ऐसा दर्पण है जो सामने वाले के मन में क्या चल रहा है उसका पता चलता है।
Motivational Story #3
ये जानकर शिष्य बड़ा खुश हुआ की गुरु जी ने बहुत ही अनमोल गिफ्ट दिया है उसे ऐसा दर्पण गिफ्ट में मिला है जिससे लोगो के अंदर की अच्छाई और बुराई के बारे में पता चल जाता है। शिष्य ने सोचा की इस दर्पण से पहले गुरु जी को ही देख लेते है की गुरु जी के मन में क्या है।
शिष्य ने जैसे ही दर्पण गुरु जी की तरफ घुमाया तो शिष्य ने देखा की गुरु जी के अंदर दुर्गुण दिखाई दिया शिष्य ने देखा की गुरु जी के अंदर अहंकार बचा हुआ है गुरु जी के अंदर क्रोध बचा हुआ लेकिन गुरु जी थे तो शिष्य ने गुरु जी को कुछ नहीं कहा और गुरु जी को प्रणाम करके वो दर्पण लेकर चला गया।
जाते जाते शिष्य ये सोच रहा था की कैसे गुरु है मैं इनको अपना आदर्श मानता था और इन्ही के अंदर क्रोध और अहंकार बचा हुआ है। शिष्य ने बहोत सोचा की गुरु जी के अंदर ही अवगुण बचे हुए बुराइया बची हुई गुरु जी अपने अंदर के बुराइयों को नहीं ख़त्म किया है। और ये सब सोच कर शिष्य का गुरु जी के प्रति भरोषा टूटता जा रहा था।
रास्ते में जाते जाते उसे उसका पुराना मित्र मिलता है तो शिष्य सोचता है की लाओ मित्र की भी परीक्षा ले लेते है क्योकि शिष्य के पास ऐसा दर्पण था जिससे सामने वाले के मन की चीजे पता चल जाती है तो उसने सोचा की मित्र के मन में क्या है देखा जाए। उसने अपने मित्र की तरफ दर्पण को किया तो उसने देखा की उसके मित्र के अंदर भी बहुत साड़ी बुराइया है बहुत से दुर्गुण है।
अब उसका भरोसा मित्र पर से भी टूट जाता है। आगे बढ़ा तो उसे एक रिस्तेदार भी दिखाई दिए तो उसने रिस्तेदार की तरफ दर्पण किया तो उसने देखा की रिस्तेदार के अंदर भी कमिया उसका रिस्तेदार से भी भरोसा टूट गया ऐसा करते करते उसका पुरे संसार पर से भरोसा टूटने लगा की पुरे संसार में कमिया है।
इसके बाद वो घर आ जाता है तो वो सोचता है की मेरे माता पिता के अंदर कोई कमिया नहीं होगी उसने सोचा की मेरे पिता जी तो बड़े प्रतिष्ठित है उनकी समाज में बहुत इज्जत है इसलिए उनके अंदर कोई दुर्गुण नहीं होगा वो निर्मल होंगे। इस उम्मीद से वो अपने पिता जी की ओर दर्पण का मुख करता है।
तो वो देखता है की पिता जी के अंदर भी बहुत सी बुराइया और माता जी के अंदर की बहुत सी बुराइया है। फिर उसने सोचा की वापस गुरु जी के पास जाते है और ये दर्पण उन्हें वापस कर देते है और पूछते है की दुनिया में चल क्या रहा है। जिसके अंदर भी देखो बुराइया मौजूद है। उसने गुरु जी को भी कहा की गुरु जी आपके अंदर भी बुरिया बची हुई है आपने अपने अंदर की बुराइयों को ही नहीं ख़त्म किया है।
तब गुरु जी कहते है की बेटा ये दर्पण मैंने तुम्हे इसलिए दिया था ताकि तुम अपने अंदर की बुराइयों को देख सको और अपने अंदर के बुराइयों को नष्ट करो और एक अच्छे इंसान बनो इसलिए मैंने ये दर्पण तुम्हे दिया था। और तुम्हे पूरा दिन निकाल दिया दुसरो की बुराइयों को देखने में जबकि तुमने अपने अंदर की ही बुराइयों को नहीं देखा।
आज की दुनिया में लोगो की यही सोच बनी हुई है लोग दुसरो की बुराइयों के बारे में जानने और उस पर चर्चा करने में ज्यादा रूचि रखते है। वही लोग अपने अंदर की बुराइयों के बारे में नहीं सोचते है की कैसे अपने अंदर की बुराई को ख़त्म किया जाए। अगर सभी लोग ऐसा करने लग जाए तो ये दुनिया बहुत सुन्दर हो जायगी।
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