आज मैं एक ऐसे महान संत की बात करने जा रहा हु जिनके जीवन से जितनी शिक्षाय ग्रहण की जाए उतनी ही कम है। Sant Siyaram Baba एक ऐसे व्यक्ति जिनकी तपस्या, भक्ति परोपकार ने लाखो लोगो के जीवन को प्रभावित किया जो नर्मदा के किनारे तपस्या और भक्ति में लीन रहे। और समाज के कल्याण में योगदान देते रहे है।
Sant Siyaram Baba
उनका असली नाम शायद ही किसी को पता हो लेकिन उनकी भक्ति और दिव्या साधना ने उन्हें एक दिव्या संत के रूप में प्रसिद्ध कर दिया। 11 दिसंबर 2024 को जिस दिन मोक्षदा एकादसी थी उस दिन उनका देवलोक गमन हुआ वो पहले ही भक्तो को कह चुके थे की मेरा मोक्षदा एकादसी के दिन ही देवलोक गमन होगा। आज बाबा जी की शिक्षाय और उनकी तपस्या की गूंज हमेशा रहने वाली है।
10 वर्षो तक खड़े होकर किया तप
बाबा जी का जन्म 1933 में हुआ था 17 वर्ष की आयु में गृहस्थी जीवन त्याग कर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का उन्होंने संकल्प लिया था। कई वर्षो तक वो तीर्थ यात्रा करते रहे और अंत में उन्होंने नर्मदा नदी के तट आकर उन्होंने तपस्या शुरू की 12 वर्षो तक खड़े रहकर मौन व्रत रखा और जब मौन टूटा तब उन्होंने पहला शब्द सियाराम कहा जो उनकी पहचान बन गया और तब सभी लोग उन्हें सियाराम बाबा के नाम से जानने लगे।
दिन में 21 घंटे तक श्री रामचरित मानस की चौपाइयां पढ़ना
बाबा जी का जीवन बहुत ही साधारण था लेकिन जो इन्होने कार्य किये वो असाधारण थे। नर्मदा के तट पर अपनी साधना में इतना मग्न रहते थे की एक दिन में 21 21 घंटे तक रामचरित मानस की चौपाइयां पढ़ते रहते थे। इनका विश्वास था की तप और त्याग से जीवन को सच्चा अर्थ मिलता है।
सियाराम बाबा 70 वर्षो तक श्री रामचरित मानस का पाठ किया इसकी चौपाई का जाम न केवल उनकी साधना का हिस्सा था बल्कि उनकी जीवन में दिनचर्या बन चूका था। बाबा जी की सादगी के बहुत सारे उदहारण है यही की वो हमेशा लंगोट में रहे कड़ाके की ठण्ड हो गर्मी हो या फिर मूसलादार बारिश हो उनका तप कभी नहीं रुका।
सियाराम बाबा की प्रसिद्ध चाय की केतली
भक्तो के बीच में सियाराम बाबा की चाय की केतली बहुत प्रसिद्ध थी। क्योकि इसमें चाय कभी ख़त्म नहीं होती थी। हर आने वाले भक्त को वो स्वयं चाय पिलाते थे उनका ये कर्म उनके दिव्या व्यक्तित्व का प्रतिक था। बहुत सारे चमत्कार सियाराम बाबा ने दिखाए है जो दिव्या आत्मा होते है उनके लिए चमत्कार बहुत साधारण बात होती है।
10 रूपए से ज्यादा कभी दान नहीं लिया
बाबा जी की एक अद्भुद विशेषता थी वो ये की बाबा जी कभी 10 रूपए से ज्यादा दान नहीं लिया जब कोई भक्त ज्यादा राशि चढ़ाना चाहे तो बाबा उसे वापस लौटा देते थे। एक बार एक भक्त ने बाबा जी को दान में 500 रूपए चढ़ा दिए बाबा जी ने सिर्फ 10 रूपए रखे और बाकि सब लौटा दिए।
बाबा जी का जीवन सादगी का उदाहरण था उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं रखा उन्हें जो कुछ भी दान में मिला वो सब समाज के कल्याण के लिए लगा दिया। बाबा जी ने नर्मदा घाट की मरम्मत के लिए 2 करोड़ 57 लाख रूपए दान में दिया था। ये वही राशि है जो 10 10 रूपए करके इक्कठा हुए थे। पूरा पैसा इन्होने विकास कार्यो के लिए दान में दे दिया।
संत सियाराम बाबा का जीवन हमें या सिखाता है की सच्चा जीवन वो है जो दुसरो के भले के लिए जिया जाए उनके जीवन से सिखने की बात यह है की भक्ति और साधना से आपकी आत्मा शुद्ध होगी और अगर दुसरो की मदद करोगे तो जीवन में सच्चा सुख मिलेगा।
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