Ustad Zakir Hussain Sahab: तबले के बिना भी ज़िन्दगी हो सकती है ये सोच पाना मेरे लिए असंभव है ये कहना था उनका जिन्होंने तबले से इतनी मोहब्बत की जब संघर्ष के दौर में जनरल ट्रैन में सफर करते थे तब बैठने के लिए सीट नहीं मिलती थी तब ट्रैन में न्यूज़ पेपर बिछा कर बैठ जाते थे और तबले को अपनी गोद में रखते है ताकि कोई गलती से तबले पर पैर ना रख दे। मैं आज उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के बारे में आपको बताने जा रहा हु।
Ustad Zakir Hussain Sahab
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब का जन्म 09 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। इनके पिता जी उस्ताद अल्ला रखा साहब जो की एक प्रसिद्ध तबला वादक थे। ज़ाकिर हुसैन साहब तबले की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता जी से ही प्राप्त किया। बचपन में ही पिता जी से तबला वादक सिख चुके थे। और जैसे ही ज़ाकिर हुसैन साहब की पढाई कम्पलीट हुई इन्होने कॉन्सर्ट करना शुरू कर दिया था।
आपको जानकारी के लिए बता दे अमेरिका में इन्होने पहली परफॉरमेंस दिया था जहा पर इनको 100 रूपए में मिले थे। इस छोटी सी शुरुआत के बाद पूरी दुनिया में इनका नाम मशहूर हो गया। समय के साथ इनके कॉन्सर्ट की फीस 10 लाख रूपए तक भी पहुंच गयी थी। ज़ाकिर हुसैन साहब बताया करते थे की उन्होंने बचपन में लोरिया नहीं सुनी है बल्कि तबले की थाप को सुना है।
कम उम्र में इन्होने तबले पर अपनी मजबूत पकड़ बना लिया था 12 साल की उम्र में ही उन्होंने तबला वादक शुरू कर दिया था। जगह जगह कॉन्सर्ट के लिए जाया करते थे। ज़ाकिर हुसैन साहब अपने तबले को माँ सरस्वती मानते हुए इबादत की कोई कमी नहीं छोड़ी। ज़ाकिर हुसैन साहब जब यात्रा करते थे तब इनके पास इतने पैसे नहीं होते थे। की रिज़र्व ट्रेन में सफर कर सके इसलिए जनरल डिब्बे में सफर किया करते थे और वहा पर अपने तबले को सुरक्षित रखते थे।
क्रिकेटर बनना चाहते थे ज़ाकिर हुसैन साहब
ज़ाकिर हुसैन साहब को बचपन में क्रिकेट खेलने का बहुत शौक था और वो क्रिकेटर भी बनना चाहते थे। लेकिन इनके पिता उस्ताद अल्लाह रखा कुरैशी साहब हमेशा से चाहते थे ज़ाकिर हुसैन तबला वादक बने। लेकिन इनके पिता जी क्रिकेट खेलने से कभी मना नहीं करते थे। एक बार हैब ज़ाकिर हुसैन क्रिकेट खेलते समय अपनी ऊँगली तोड़ लेते है तब इनके पिता जी सख्ती से क्रिकेट खेलने के मना कर दिया था।
ज़ाकिर हुसैन साहब का भारतीय शास्त्रीय संगीत में योगदान
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के विकास में काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है साल 1988 में पद्मश्री अवार्ड मिला था और साल 2002 में पद्मभूषण अवार्ड मिला था और 2009 में पद्म विभूषण जैसे सम्मानों से सम्मानित किया गया है। उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब की संगीत की आवाज आज भी लोगो के दिलो गूंजता है।
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब जिनका जीवन काफी संघर्ष भरा रहा है इन्होने अपनी कला के माध्यम से भारतीय संगीत को ना सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनिया में पहचान दिलाई। ये म्यूजिक इंडस्ट्रीज हमेशा उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब को याद रखेगी।
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