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Hanuman JI Story: प्रयागराज में लेते हुए हनुमान जी की मूर्ति का रहस्य क्या है

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Hanuman JI Story: पौराणिक काल से बजरंगबली का नाम चमत्कारों से जुड़ा हुआ है। जैसे सीने में बैठे श्री राम जानकी के दर्शन करवाना हो या फिर लक्षमण जी को जीवित करने के लिए संजीविनी के पुरे पहाड़ को उठा लिए थे। पौराणिक काल ही नहीं बल्कि कलयुग काल में भी हनुमान जी के बहुत से चमत्कार देखने को मिलते है।

Hanuman JI Story

भारत में जगह जगह पर हनुमान जी के प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर है इन्ही में से एक मंदिर संगम किनारे लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर है जो अपने आप में ही एक अनोखा मंदिर है। आज मैं आपको इसी मंदिर के ऊपर एक कहानी को बताऊंगा।

इस मंदिर में हनुमान जी लेटे हुए अवस्था में प्रतिमा क्यों है

आखिर क्या कारण है की यहाँ हनुमान जी लेटे हुए अवस्था में है आखिर इस अवस्था में हनुमान जी की प्रतिमा क्यों है। संगम के किनारे यह मंदिर स्थित है संगम के बारे में एक बात कही जाती अगर आपने यहाँ स्नान करने के बाद अगर आपने इस मंदिर में जाकर दर्शन नहीं किया तो स्नान अधूरा माना जाता है।

जब हनुमान जी अपने गुरु सूर्यदेव जी से अपनी शिक्षा लेकर विदा ले रहे होते समय गुरु दक्षिणा की बात करते है तब भगवन सूर्यदेव जी कहते है की जब सही समय आएगा तब मैं दक्षिणा मांग लूंगा। इस बात पर हनुमान जी मान जाते है। लेकिन हनुमान जी के द्वारा बहुत जोर देने के बाद भगवन सूर्य कहते है।

मेरे वंश में अवतरित अयोध्या के राजा भगवान श्री राम और उनके भाई लक्षम और माता सीता के साथ वनवास को प्राप्त हुए है जंगल में उन्हें कोई कठनाई ना हो कोई राक्षस उन्हें कष्ट ना पहुचाये इस बात का ध्यान रखना होगा। सूर्यदेव की बात सुनकर हनुमान जी अयोध्या की तरफ प्रस्थान करते है।

फिर भगवान राम सोचते है की अगर हनुमान जी सभी राक्षसों का संहार कर देंगे तो मेरे अवतार का उद्देश्य समाप्त हो जायगा। इसलिए उन्होंने माया को प्रेरित किया की हनुमान जी को घोर निंद्रा में दाल दो। भगवान् का आदेश प्राप्त करके माया उधर चली जिधर से हनुमान जी आ रहे थे।

हनुमान जी चलते हुए जब गंगा जी के तट पहुंचे तो भगवान सूर्य अस्त हो चुके थे रात्रि का समय हो चूका था हनुमान जी माता गंगा जी प्रणाम करते है और कहते है की रात को गंगा जी को नहीं पार करेंगे यह सोच कर यही पर रात्रि बिताने का निर्णय लिया। लेकिन हनुमान जी के अंदर अपने गुरु के आज्ञा का पालन करने की बात बार बार याद आ रही थी और नींद उन्हें नहीं आ रही थी।

तब हनुमान जी सोचते है की सत्संग में रात बिताया जाए ये सोचकर हनुमान जी ऋषि भरद्वाज जी के आश्रम की तरफ चल पड़ते है। यह देख कर माया और निराश हो जाती है। जब हनुमान जी भरद्वाज ऋषि के आश्रम में पहुंचते है तो वह वेद पुराण का व्याख्यान चल रहा था।

हनुमान जी वही बैठकर कथा सुनने लगे थे और फिर भरद्वाज ऋषि ने बताया की कल जगत के स्वामी अयोध्या के नरेश दशरथ के पुत्र के रूप में अवतरित होने वाले है। ये सुनकर हनुमान जी प्रशन्न हो जाते है। और हनुमान जी गंगा पार करके अयोध्या जाने का विचार त्याग दिया और वही संगम के तट पर भगवान जी की प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया।

रात का समय था हनुमान जी ने सोचा थोड़ा लेट जाता हु जैसे ही हनुमान जी लेटते है उन्हें निंद्रा आ जाती है। और तभी माया को अवसर मिल जाता है और भगवान हनुमान घोर निंद्रा में चले जाते है। इधर भगवान् राम गंगा को पार करके प्रयाग पहुंचते है और उन्होंने हनुमान जी सोते हुए देखा तो वरदान दिया की जो भी सोते हुए हनुमान जी के जो दर्शन करेगा। उसे बिना किसी प्रयास के ही मेरी प्राप्ति होगी।

वरदान देकर भगवान श्री राम आगे की ओर प्रस्थान करते हुए निकल जाते है। ये वरदान आज भी सत्य साबित होता है। प्रातः काल जब गंगा जी ने देखा की एक प्राणी उनकी तरफ पाँव फैलाकर सो रहा है तो उन्होंने अपने आप को अपमानित महसूस किया और हनुमान जी को डुबो दिया।

लेकिन जब सूर्यदेव ने देखा की उनके शिष्य की ये दशा हुई है तो गंगा जी को शाप दिया और कहा की तुम्हारा ह्रदय मैला है जो तुमने सीधे साधे प्राणी को दंड दे दिया। हनुमान जी तुम्हारा सम्मान करते हुए रात में गंगा जी को पार नहीं किया। ये वो कथा है जो प्रयागराज के संगम के किनारे स्तिथ मंदिर के बारे में है।

इस मंदिर के ऊपर एक और कथा है जो काफी प्रसिद्ध है

ऐसा कहा जाता है की इस मंदिर में जो हनुमान जी की प्रतिमा है इसके पीछे हनुमान जी की पुर्नः जन्म की भी कहानी जुडी हुई है। कहा जाता है की हनुमान जी लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद जब हनुमान जी अपार कष्ट से पीड़ित थे और काफी थक चुके थे। तब माता जानकी ने इसी जगह पर नया जीवन और हमेशा चिरायु रहने का आशीर्वाद दिया था।

इसके साथ ही माता जानकी ने भी कहा था की जो भी इस त्रिवेदी तट आएगा उसके संगम स्नान का फल तभी मिलेगा जब वो हनुमान जी दर्शन करेगा। माता जानकी के सिंदूर दिए जाने के बाद से ही इस मंदिर में आने वाले भक्त भी सिंदूर का दान करते है और इसे शुभ माना जाता है।

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